कविता पेटशाली 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद 8081 0 Hindi :: हिंदी
काँच ,बिखरे ,शहर , मैं,लहू का अरमान कहां,से लाऊं, दोषी ,के पैरों में है ,धूप,। मगर ,अंधा इस देश का कानून , मैं, आसमान कहां,से लाऊं, बहुत,करीब से गुजरी हूँ, देश के स्याही दरवाजे से,। सालों ,छूट जाता है,गुनाह करने वाला,। मगर, इन दफ्तरों की लाज कहां से लाऊं,। न,पूछो ,वो चिट्ठियां क्यों मर गयी,। देश में , रफा दफा होते हैं, मामले हथियारों के,। वर्दी तुम ही बता दो , क्यों,कविता जिन्दा लाश होके घर गयी,। नहीं, बकाया कुछ अल्फाजों का ,यह इस्तेहार है, । कुछ,भी बोलो ,इस देश में ,गरीबों के सर पर बड़ी मार है,।।✍️कविता पेटशाली
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