मनीष सिंह "क्षत्रिय" 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक समाज की आंखे खोलने वाली कविता, आदर्श कविताएं, प्रोत्साहित करने वाली कवितायेँ, सामाजिक कविताएं, देश प्रेम से भरी कवितायें, अच्छी कविताये, देशी कविताएं, प्रेरक कविताएं 21417 0 Hindi :: हिंदी
मंजिलें दूर हैं नज़रों से ओझल .. जाने कहाँ बसेरा होगा, एक आज का दिन है.. कल कैसा सवेरा होगा? कल कैसा सवेरा होगा? बेरहम नज़र लगी किसकी इन इंसानी हसीन वादियों में है, जल रहा इंसानियत नफ़रत की आँधियों में है, अब तलक दिखता नही रोशनी दीये का.. जाने कब तक ये अंधेरा होगा, एक आज का दिन है.. कल कैसा सवेरा होगा? कल कैसा सवेरा होगा? अब संभाल जाओ, राह पर आओ की एक रोज ऐसा रहेगा, धरती तो होगी मगर ये गुलिस्ताँ उजड़ा चमन जैसा रहेगा, ग़मो के मेले होंगे..आँसुवो से लदे ठेले होंगे, हम होंगे दुकानदार..हमारे अपने खरीद रहे झमेले होंगे, विष घोला है जो हमने, हमारा भविष्य सांप होगा... अतीत, बीन बजाता सपेरा होगा.. एक आज का दिन है.. कल कैसा सवेरा होगा? कल कैसा सवेरा होगा?? ✒️मनीष सिंह "क्षत्रिय"