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लालसा

Santoshi devi 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक इच्छा 11830 0 Hindi :: हिंदी

पोषी दूनी लालसा,दूनी दुख की रेख।
लिखा विधाता का नही,लिखा स्वयं का लेख।।
लिखा स्वयं का लेख,दोष दूजे सर मढ़ता।
घड़ी-घड़ी में बैठ,टोटके मनवा गढ़ता।।
जीवन बेड़ा पार,हुआ उनका "संतोषी"।
चाही सुख की आस,लालसा घनी न पोषी।।

विनती करती मातु मैं, संतोषी नादान।
दूर करो अँधियार मन,बनकर के दिनमान।।
बनकर के दिनमान,उजाला घट फैलाओ।
दिखने लगे विकार,व्यर्थ के भ्रम मिटाओ।।
करे हृदय से जाप,प्रार्थना जल्दी सुनती।
आओ घट के द्वार,मातु अब सुनकर विनती।।

   संतोषी देवी
   शाहपुरा जयपुर राजस्थान।

  

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