Uday singh kushwah 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक Google/yahoo/bing 9111 1 5 Hindi :: हिंदी
मन के द्वार एक दीप धंरु मैं! हृदय के तम को दूर करुं मैं!! हो उजियारा चहूं ओर, तन को सरावोर करुं मैं! अटरिया के कमूरे पर दीप धरुं में आस विश्वास को नव नीड़ो से कमतर न करें मैं! बुझती लौ और उठते प्रकाश को अंगीकार करुं मैं! द्वार-द्वार जले दीवाली दीप से दीप वदलूं मैं! अपने प्रकाश से दूसरे का तम हरुं मैं! नव सृजन कर नव काव्य गढुं मैं नव नूतन सा विश्वास लिए दीप मालाओं को दीप्त करुं मैं! यू.एस.बरी लश्कर, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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