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म्हारी प्यारी खेजङी, ऊनाळै सियाळै तुं रेवै हरी-भरी, काळा हिरण थारै छिंया मे कुचाळा मारै, जद ऊनाळै मे सगळा वृक्ष सूख जावै। पण तुं किंया हरी-भरी रेवै, जेठ री लू मे तुं एकली खङी मुस्करावै, जीव थारी छींया मे बैठ अर जान बचावै ऊनाळै मे पाणी घणी घणी कोसा तांई नी मिळै, पण तुं खेजङी हरी-भरी रेवै। जेठ रै तीखै तावङीयै मे जींवा रै होठां माथै, फेफ्फियाँ आ जावै पण तुं युं खङी मुस्करावै, मारवाङ रा किसान थारी साँगरी ने गणै चावै सुं खावै, थारै लूंख ने खा'र अणूता ऊँठ अरङावै। धन्य धन्य थारी छाँव खेजङी, म्हारी रुपाळी प्यारी खेजङी। मिंमझर, साँगरी और खोखा देवै, थारो हाथ कदी न खाली रेवै। चिङी कमेङी री आश्चर्य दाता है तुं, केर,बोरङी अर किकर री साथी तुं। मारवाङ री शान खेजङी, म्हारी प्यारी रुपाळी खेजङी। - कवि सुनील कुमार नायक

कवि सुनील नायक 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य विरह वेदना पर दोहे 9326 0 Hindi :: हिंदी

म्हारी प्यारी खेजङी,
ऊनाळै सियाळै तुं रेवै हरी-भरी,
काळा हिरण थारै छिंया मे कुचाळा मारै,
जद ऊनाळै मे सगळा वृक्ष सूख जावै।
पण तुं किंया हरी-भरी रेवै,

जेठ री लू मे तुं एकली खङी मुस्करावै,
 जीव थारी छींया मे बैठ अर जान बचावै
ऊनाळै मे पाणी घणी घणी कोसा तांई नी मिळै,
पण तुं खेजङी हरी-भरी रेवै।

जेठ रै तीखै तावङीयै मे जींवा रै होठां माथै,
 फेफ्फियाँ आ जावै पण तुं युं खङी मुस्करावै,
मारवाङ रा किसान थारी साँगरी ने गणै चावै सुं खावै,
थारै लूंख ने खा'र अणूता ऊँठ अरङावै।

धन्य धन्य थारी छाँव खेजङी,
म्हारी रुपाळी प्यारी खेजङी।
मिंमझर, साँगरी और खोखा देवै,
थारो हाथ कदी न खाली रेवै।

चिङी कमेङी री आश्चर्य दाता है तुं,
केर,बोरङी अर किकर री साथी तुं।
मारवाङ री शान खेजङी, 
म्हारी प्यारी रुपाळी खेजङी।
                  - कवि सुनील कुमार नायक

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