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प्रकृति जो दे ,मंजूर हो कविता

कविता पेटशाली 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 11295 0 Hindi :: हिंदी

एँ,पर्वत ,कभी ,तुम ,मुझे,।
एकाग्र पथ पर,डटे ,रहने का ,।
उपहार दो,।
मेरे ,इन नयनों ,में ,जो छवि है ,तुम्हारी,
दृढ़ ,एवं कठोर,‌‌
हालातों ,से ,मजबूर ,यह कविता,चाहती है ,बस ,तुम मुझे ,वह विरता प्रदान करो,
मैं,लगूं,किसी ,वृक्ष की भांति ,अत्यधिक गम्भीर,।
मुझे नहीं ,चाहिये,। जमाने ,भर का चंद कंधा,।
जो,धकेलता हो ,किसी ,गहरी खाई की ओर,
लहजे, से यह ,कोरा सा ,कागज ,भी तो यहीं ,पुकारता है,‌‌।
कविता तुम ,वो आंख बनो,।
जो घूमे ,पृथ्वी के चारों ,ओर,।
कविता पेटशाली





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