अनिल कुमार केसरी 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद मजबूरियों की व्यथा 7058 0 Hindi :: हिंदी
रोती छत-सिसकता फर्श उस घर की टपकती छत ने, घर के फर्श से कहा होगा- कि माफ़ करना, हालत अभी बुरी है। घर के गीले फर्श ने, हँसते हूए कह दिया होगा- कोई बात नहीं, अपनी भी हालत कुछ तेरे जैसी है। तू बारिश में रोती है, मैं हर मौसम में भीगा रहता हूँ। और... तू ने भी तो देखा है- मेरे अधनंगे भूखे बदन को, अक्सर घर के फर्श पर आँसू बहाते।