Vipin Bansal 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #व्यापार 31874 0 Hindi :: हिंदी
कहीं थम गई सांसे कहीं कोई बर्बाद हुआ कहीं जीवन पूरा ठहर गया कहीं कोई आबाद हुआ !! कहीं मांग का सिंदूर मिटा कहीं आँखो का टूटा तारा कहीं किसी की सूनी कलाई कहीं राखी से रूठा भाई किसी के सर की छाया गई कहीं संगिनी संग हुआ बिछोह किसी ने माँ की ममता खोई कहीं भाई की ममता रोई कहीं ममता से दुराचार हुआ कहीं जीवन पूरा ठहर गया कहीं कोई आबाद हुआ !! तड़पते दम घुटते लोगो से सांसो का व्यापार हुआ मानव अंगो की तस्करी की खातिर मानवता का बलिदान हुआ ऐसे घिनौने कूकृत्य से मानव रचना करने वाला ही शर्मसार हुआ कहीं किसी ने तिजोरी भरी कहीं कोई कंगाल हुआ कहीं जीवन पूरा ठहर गया कहीं कोई आबाद हुआ !! कहीं दवाओ की कालाबाजारी कहीं ऑक्सीजन की मारा मारी हर तरफ अहाकार मचा था कहीं करोना काल बना किसी के घर का ये त्यौहार बना चंद सिक्कों की खातिर इंसा क्यों मानव से शैतान हुआ कहीं जीवन पूरा ठहर गया कहीं कोई आबाद हुआ !! मौत पड़ी जिंदगी पर भारी कभी न देखी ऐसी लाचारी अपनो की महफिल में रह गया अकेला जिंदगी तरस रही थी रूहें भटक रही थी कहीं जनाजा कहीं है अर्थी अपनो के कांधो को तक रही थी जिस्म नहीं रूहों को भी मारा मानवता का क्या हाल हुआ कहीं जीवन पूरा ठहर गया कहीं कोई आबाद हुआ !! अब कर्म करो कुछ ऐसे जीवन यज्ञ बन जाँए अच्छे कर्मों की आहुति से यह पाप सभी धूल जाँए मानवता से प्रेम करो सभी जीवों पर रहम करो प्रकृति का मत दोहन करो कर्म हमारे,करोना अवतार हुआ मानव के ही हाथों,मानव का संघार हुआ कहीं जीवन पूरा ठहर गया कहीं कोई आबाद हुआ !! विपिन बंसल