Vikas Yadav 'UTSAH' 30 Mar 2023 कहानियाँ हास्य-व्यंग मैं नहीं लिख सकता कविता विकास यादव उत्साह, कहानी, मदर्स डे पर, फादर्स डे पर विशेष 8966 0 Hindi :: हिंदी
(व्यंग्यात्मक रचना) शीर्षक - मैं नहीं लिख सकता:कविता आज फादर्स डे है जिसे हम पित्र दिवस के नाम से जानते हैं, अभी कुछ सप्ताह पहले ही मदर्स डे था यानी माताओं का दिन,मैंने अपने स्कूल में तरह-तरह के मां पर आधारित कविताएं सुनी जो कि दिल छू जा रहे थे। आज फादर्स डे है, और मेरे भी मन में तरह-तरह की अभिलाषाएं उमड़ रही हैं, कि मैं भी एक अच्छा सा विषय वस्तु देखकर अपने माता-पिता पर एक कविता लिख जाऊं आज से पहले भी मैंने अनेक कविताएं लिखी और शत-प्रतिशत लोगों से प्यार- आशीर्वाद भी मिले ,परंतु आज पता नहीं क्यों मेरा दिल गवाही नहीं देता, लेखनी रुक सी गई है, मानो आगे अथाह सागर है और मैं एक कागज की कश्ती लिए एक लोटा पानी निकालकर अपनी प्यास बुझाने को सोच रहा हूं, शायद यह प्यास तो बुझ जाएगी किंतु दिल को शीतलता नहीं मिलेगी आज मैंने अपने तमाम बचपन से लेकर स्कूल गांव- घर की यादों को ऐसे उकेर रहा था मानो जैसे श्मशान घाट पर नाविक जली हुई चिता से सोने की खोज कर रहा हो। मुझे यादों में खोए खोए लगभग एक से दो घंटे हो गए पर अभी भी मुझे पता नहीं चल रहा कि मैं लिखूं तो क्या लिखूं? गलती मेरी नहीं कि मेरे पास शब्दकोष तैयार नहीं, बल्कि मुझे लगता है कि गलती मेरे माता-पिता की है जिन्होंने मेरे ऊपर इतना उपकार लाद दिए हैं इसे मैं उपकार की संज्ञा भी नहीं देख सकता, क्योंकि उपकार तो जमींदार और साहूकार के मध्य स्थापित होता है मां और बेटे के बीच नहीं अगर उनके स्नेह और प्यार की पोटली खोलता हूं तो मानो अंगुलियों पर नहीं गिन सकता। अगर लिखता हूं तो मुझे ऐसा नहीं लगता कि मेरे कलम और डायरी के पन्नों में इतनी सामर्थ्य है कि यह उसे संजोकर भली-भांति शब्द चित्रित कर सकेंगे,मुझे तो कविता लिखना है जिसमें आज मैं अपने माता-पिता के गुणगान गा सकूं। अगर एक एक करके लिखने लगूं तो पूरी डायरी भर जाएगी ,और इतनी बड़ी कविता पढ़ेगा कौन? किसके पास है, इतना समय? जो देखेगा मेरी रचना को, आज चाह कर भी शब्द नहीं निकल रहे हैं मेरे तालु से।मुझे आज शिकवा शिकायत है अपने जन्मदाता से ,आज उन्होंने मुझे जन्म ही क्यों दिया जिनका उपजा बीज उनके बारे में एक काव्य रचना तक नहीं कर सकता। शायद नहीं, शायद! मैं नहीं लिख सकता कविता। रचना- विकास यादव "उत्साह" रचना सारांश - इस कहानी या व्यंगात्मक रचना के माध्यम से लेखक माता पिता के प्यार को अथाह सागर बताते हुए उन तमाम कवियों पर व्यंग करते हैं ।कि आखिर कैसे लोग मां -बाप के प्यार को कुछ पंक्तियों में ही सीमा बद्ध कर समाहित कर देते हैं, जो कि लेखक उत्साह के बस की बात नहीं है। वे उनके प्यार को शब्दों में बांध नहीं सकते हैं। लेखक का मानना है कि उनके क्या उनके लेखनी और उनके इन पन्नों के बस की बात नहीं है जो कि माता-पिता के उन तमाम प्यार दुलार और बीते पलों को शब्द चित्रित कर सकें, अंत: लेखक निराश है।