भटक रही थी बूढ़ी महिला
तम तमाती धूप में |
अधमरी सी झुकी खड़ी थी,
कंकाल के रूप में ||
उपल ,कण्डा उठा उठा कर ,
भर रही थी टोकरी. |
चाह जीने की प् read more >>
भटक रही थी बूढ़ी महिला
तम तमाती धूप में |
अधमरी सी झुकी खड़ी थी,
कंकाल के रूप में ||
उपल ,कण्डा उठा उठा कर ,
भर रही थी टोकरी. |
चाह जीने की प् read more >>
खींच खींच ले मन को जाते
मीत मनोहर वे बन जाते ,
उमड़- घुमड़ कर आगे पीछे
उड़ते बादल कहां को जाते |
कुछ नाचते खुशी मनाते
कुछ के आंसू झर झर जा read more >>